Monday, March 21, 2011
ट्रेन का वो सफर
दोस्तों आज मैं आप को अपना एक बहुत ही सुखद और दुखद अनुभव बताने जा रहा हूं...सुखद और दुखद दोनों कैसे... ये आप को पूरी कहानी पढ़ने पर ही पता चलेगा...होली का त्योहार बीते अभी एक दिन ही बीता है...मैं भी होली के त्योहार पर अपने घर जाना चाहता था...लिहाजा रिजर्वेशन के लिए एक महीने पहले चेक किया...लेकिन कोई भी रिजर्वेशन नहीं था...किसी भी गाड़ी में...और तब तक छुट्टी का भी तय नहीं था...सो मैंने सोचा दो दिन पहले तत्काल में रिजर्वेशन करवा लूंगा...लिहाजा मन को मसोसस कर चुपचाप बैठ गया...इंतजार के पल बहुत जल्द ही खत्म हो गए...वो दिन भी आ गया...तारीख 16 मार्च...जब मुझे 18 को घर जाने का तत्काल रिजर्वेशन करवाना था...सुबह जल्दी उठ कर कमरे के नजदीक के रिजर्वेशन काउंटर पर पहुंचा...तो देखा तकरीबन तीन हजार लोगों की लाइन लगी है...और जमकर धक्कामुक्की हो रही है...भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस लाठियां चटका रही है...लाठियों की आवाज साफ सुनाई दे रही थी...मैंने कहा इस तरह तो रिजर्वेशन मिलना मुश्किल है...मैं वहां से तुरंत भाग कर दूसरे जगह के रिजर्वेशन काउंटर पर गया...पर रिजर्वेशन पाने में सफल न हो सका...आखिर मैंने अपने शहर के एक एजेंट को फोन किया और कहा भाई मुझे 18 तारीख का रात की ट्रेन का रिजर्वेशन चाहिए...उसने कहा मिल जाएगा पर 1500 की टिकट मिलेगी...घर जाना था सो मरता क्या न करता...हां कर दी...उसने कहा स्टेशन पर आप को टिकट मिल जाएगी...18 को दिनभर ऑफिस में काम करने के बाद रात दस बजे मैं भागत हुआ स्टेशन पहुंचा...वहां पहुंचकर फिर मैंने अपने एजेंट से पूछा टिकट कहा है...उसने बताया तो मैं टिकट लेने खुशी खुशी चल पड़ा...मन में सोचा चलो अच्छा हुआ रिजर्वेशन मिल गया...नहीं तो बहुत परेशानी होती...क्योंकि प्लेटफॉर्म पर बहुत भीड़ थी...इसी उधेड़बुन में मैं पहुंच गया वहां जहां मुझे टिकट मिलनी थी...टिकट हाथ में आई तो आंखे खुली रह गई...टिकट वेटिंग की थी...वो भी 211 वेटिंग एसी थ्री में...मैंने फिर से एजेंट को फोन किया पूछा ये क्या भाई वेटिंग की टिकट...उधर से जवाब आया...फला नाम के टीटीई से मिल लो...और फला का नाम बता देना...मैंने वैसा ही किया...पर टीटीई ने कुछ न सुना बोला नीचे उतरो...मैं नीचे उतरा...मैंने सोचा अब तो घर नहीं पहुंच पाउंगा...फिर मैंने कहा जो होगा देखा जाएगा...ट्रेन धीरे धीरे चलने लगी...मैं लपक कर एसी डिब्बे में चढ़ गया...ट्रेन चल दी...कुछ देर बाद टीटीई फिर आया...मैंने वहीं बात दोहराई...उसने कहा अभी यहीं रहो देखता हूं...मुझे लगा लगता है सीट मिल जाएगी...मैं दरवाजे के पास ही बैग पर बैठ गया...रात के दो बज गए...पर टीटीई नहीं आया...जब आया तो बोल जनाब सीट तो है नहीं आप जहां है वहीं बैठे रहे...मजबूरी थी....घर जाना जरुरी था...सो वहीं बैठ गया...कुछ देर बाद कोच का अटेंडेंट बोला कि सर क्या मैं कुछ व्यवस्था करूं...मैंने कहा हां करो...वो बेड सीट और कंबल लेकर चलने लगा...और कहा आइये सर...वो मुझे डिब्बे के दूसरे छोर पर ले गया...मैंने देखा यहां तो कोई सीट नहीं है...तभी उसने मुझे सामान रखने वाली अलमारी की तरफ इशारा किया...कहा यहां पर चादर बिछा देता हूं...लेट जाइये कुछ तो आराम रहेगा...मैंने सोचा बैठे रहने से तो अच्छा यहां पर लेटना है...मैं बिना कुछ ज्यादा सोचे लेट गया...कुछ देर बाद नींद आ गई...आंख खुली तो सुबह के 6 बज रहे थे...मैं उठा...मुंह धुला...दरवाजा खोलकर देखा कि स्टेशन आने में अभी एक से डेढ़ घंटा लगेगा...मैं वहीं खड़ा रहा नौ बजे मेरा स्टेशन आया मैं अपने घर पहुंच गया...मन में बहुत खुशी थी...लेकिन थोड़ा गम भी...तो अब आप समझ गए होंगे जो मैंने शुरूआत में सवाल उठाया था...दोस्त जिंदगी में आप के साथ भी ऐसा हो सकता है...इसलिए इस कहानी को याद रखना...दुख और सुख का चोली दामन का साथ है...बिना दुख की अनुभूति के सुख नहीं मिलता।
Tuesday, March 8, 2011
कांग्रेस डीएमके के खेल का राज
कांग्रेस और डीएमके के बीच आखिरकार सीटों के बंटवारे को लेकर चले आ रहे घमासान का खात्मा हो गया...पर्दे के पीछे क्या खेल खेला गया ये तो ठीक ठीक कह पाना कठिन है...लेकिन मिल रही खबरों के माने तो पर्दे के पीछे एक बहुत बड़ा खेल खेला गया है...पहले बात कांग्रेस की कमजोरी की करते है...अब देखिए अगर डीएमके यूपीए से नाता तोड़ लेता तो यूपीए को थोड़ी परेशानी तो होती ही...ऐसे में कांग्रेस को मुलायम सिंह यादव की तरफ हाथ बढ़ाना पढ़ता...मुलायम सिंह यादव तो बस इसी ताक में बैठे है...क्योंकि आने वाले यूपी चुनाव में उन्हें कांग्रेस का साथ जो चाहिए...ऐसे में केंद्र में यूपीए का समर्थन तो करते लेकिन इससे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को नुकसान होता...और कांग्रेस के मिशन 2012 को करारा झटका लगता...और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस बी पार्टी के तौर पर हो जाती...जो कि कांग्रेस कतई नहीं चाहेगी...अब बात डीएमके की करते है...ए राजा के 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में फंसने के बाद डीएमके का पूरा कुनबा उसमें फंसता नजर आ रहा है...इसलिए डीएमके भी पूरी तरह से ये नहीं चाहता था कि वो कांग्रेस का साथ छोड़े...क्योंकि ऐसा करना उसके लिए नुकसानदेह था...जिसके चलते डीएके ने सीटों के बदले कांग्रेस से यहीं मांगा होगा कि करूणानिधि की बेटी कनिमोझी, करुणानिधि की पत्नी पर उनके परिवार के अन्य लोगों को सीबीआई की पहुंच से दूर रखा जाए...अब इस खेल के पीछे भला और क्या हो सकता है...दोनों ही दलों की बात बन गई और दुनिया के सामने संबंध टूटने का ड्रामा भी खूब हो गया...अगर आप को लगता है कि मेरी राय या विचार गलत है तो कृपया मार्गदर्शन करें।
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